Vidur in mahabharat | विदुर के पिता कौन थे

vidur in mahabharat विचित्रवीर्य के स्वरगवास हो जाने के पश्चात उनकी पत्नी अम्बालिका और अम्बा के कोई संतान नहीं थी राजगद्दी पर बैठने के लिए इस लिए राजमाता ने भीष्म को बुलाया

और आदेश दिया की तुम अपनी परतिज्ञा को तोड़ दो तो भीष्म ने इंकार कर दिया की भीष्म की प्रतिज्ञा अटूट है

vidur in mahabharat
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इस लिए माता ने अपने कौमार्य समय की संतान महाराज वेदव्यास थे और अंत में नियोग वस्था से उन महारानियो का संबंध ऋषि वेदव्यास से कराया

लेकिन दूसरी बार अपनी जगह दासी को भेज दिया उसके द्वारा ऋषि वेदव्यास से सम्बन्ध बनाये गए तो उनको विदुर जैसे महान व्यक्ति की प्राप्ति हुई

vidur kiske putra the

कहते है विदुर को धर्मराज का अवतार माना जाता है विदुर श्री कृष्ण के भगत थे इस लिए विदुर के घर कृष्ण गए थे विदुर एक दासी के गर्भ से उतपन हुए

इस लिए विदुर को दासी पुत्र भी कहते है कहते है जब भगवान श्री कृष्ण विदुर जी के घर गये तो विदुर

विदुर के पिता कौन थे
विदुर के पिता कौन थे

जी की पत्नी को विश्वास नही हुआ वे उनकी सेवा में केले लेकर आई और केले के छिल्को को तो भगवान को परोस दिए और केले के अंदर का फल भगवान को खिलाने लगी 

जब विदुर जी ने ये सब देखा की विदुर जी की पत्नी विदुर जी को केले के छिलके खिला रही है तो विदुर जी ने आके उसे रोका और भगवान से कहा प्रभु ये तो अबला है मुर्ख है

vidur in mahabharat  आप भी इसके दिए हुए छिलके खाए जा रहे है तो भगवान श्री वासुदेव बोले विदुर भगत मुझे भाव विभोर यानि प्रेम के वस होकर जो भी देता है

 में उसे ग्रहण कर लेता हु और कहा विदुरानी के छिल्को में जो मुझे स्वाद आ रहा है उतना स्वाद तो मुझे दुर्योधन के मेवे में भी नही आ सकता है

 तो ये है भगवान श्री कृषण बोलिए श्री कृषण भगवान की जय!

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