सत्यभामा कौन थी | satyabhama story in hindi

Satyabhama story in hindi यह बात उस समय की है जब श्री कृष्ण भगवान ने अवतार लिया हुआ था उस समय सत्राजित नाम का एक राजा हुआ करता था

उसके पास स्यमंतक मणि हुआ करती थी जो कि उसे भगवान सूर्य ने प्रदान की थी उस मणि का यह विधान था कि उससे प्रत्येक दिन सोना निकलता था एक बार सत्राजित का भाई प्रसेन

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सत्यभामा कोन थी पूरी कथा

उसे गले में धारण करके शिकार खेलने वन में चला गया वह काफी समय तक अपने घर नहीं लौटा

तो सत्राजित को यह शक हुआ की श्रीकृष्ण ने उसके भाई प्रसेन को मार डाला और स्यमंतक मणि को हासिल कर लिया

सत्यभामा कौन थी

जब यह बात श्रीकृष्ण को मालूम हुई तो श्री कृष्ण अकेले ही उस वन की ओर प्रस्थान किया जहां सत्राजित का भाई

शिकार खेलने गया था आगे चलकर श्रीकृष्ण को यह मालूम हुआ कि सत्राजित के भाई को घोड़े समेत

एक शेर ने मार डाला जब श्री कृष्ण शेर के पैरों के निशान को देख कर आगे बढ़े तो देखा

कि आगे शेर मरा पड़ा है और वहां पर एक रींछ के पैर के निशान हैं श्री कृष्ण जब उसके पैर के निशान को देख कर आगे बढ़े

तो वहां पर उन्होंने एक गुफा देखी उस गुफा में श्री राम अवतार के समय के जामवंत जी रहते थे

श्री कृष्ण ने उनसे जाकर स्यमंतक मणि मांगी और अपना भेद उनको नहीं दिया तो जामवंत जी श्री कृष्ण से युद्ध करने लगे युद्ध करते जामवंत को यह पता चल गया

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सत्यभामा कौन थी in Hindi

कि उन्हें इस पृथ्वी पर श्री राम के अलावा दूसरा कोई नहीं हरा सकता तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से अपने सही रूप में आने के लिए कहा

तो श्री कृष्ण भगवान ने जामवंत जी को वहां श्री राम के रूप में दर्शन कराए श्री कृष्ण को स्यमंतक मणि के साथ साथ है

अपनी प्यारी पुत्री जामवंती भी दे दी यानी कि भगवान श्रीकृष्ण ने वहां जामवंती से विवाह किया और उसके बाद द्वारिका लौट गए

द्वारिका जाने के बाद श्री कृष्ण स्यमंतक मणि लेकर सत्राजित के घर गए

सत्यभामा विवाह

और उन्होंने स्यमंतक मणि श्री कृष्ण को लौटा दी जब सत्राजित बहुत ही लज्जित हो गया तो उसने वह मणि श्रीकृष्ण को उपहार स्वरूप

देनी चाहिए परंतु श्री कृष्ण ने उसे यह कहकर मना कर दिया कि आप सूर्य भगवान के सेवक हैं

उन्होंने आपको यह स्यमंतक मणि दी है अब आपसे मैं यह मणि नहीं ले सकता तो सत्राजित और भी

लज्जित हो गया तो उसने ज्यादा कुछ नहीं सोच कर अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्री कृष्ण से कर दिया सत्यभामा बहुत ही सुंदर कन्या थी और सत्यभामा मैं सारे सद्गुण विद्यमान थे

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सत्यभामा का अहंकार

एक बार जब सत्यभामा को घमंड हो गया था की श्री कृष्ण को उनसे अलावा और कोई अधिक प्रेम नहीं करता

जब यह बात श्रीकृष्ण को पता चली तो उन्होंने उनका घमंड दूर करने के लिए एक लीला रचाई उस समय नरकासुर का स्वर्ग लोक पर बहुत ही आतंक था

जब इंदर भी उन से पराजित होकर ब्रह्मा जी के पास गए तो ब्रह्मा जी ने इंदर से कहा कि पृथ्वी लोक पर भगवान श्री कृष्ण आपके दुखों को दूर करेंगे

तो इंद्रदेव श्री कृष्ण के पास आकर अपनी विनती की तो भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें निश्चित होने को कहा और स्वयं नरकासुर से युद्ध करने के लिए चलने लगे तो

सत्यभामा साथ चलने की जिद करने लगी तो श्रीकृष्ण ने भी आने को कहा श्री कृष्ण और सत्यभामा दोनों ही युद्ध के लिए गये

सत्यभामा का घमंड

सत्यभामा ने श्री कृष्ण की युद्ध में सहायता भी की और श्री कृष्ण भगवान ने नरकासुर का वध कर दिया और वह स्वर्ग को चले गए क्योंकि नरकासुर ने इंद्र की माता अदिति के कुंडल चुरा लिए थे

जब श्री कृष्ण माता अदिति को कुंडल देने पहुंचे तो माता अदिति ने खुश होकर

सत्य भामा को यह आशीर्वाद दिया कि तुम जब तक धरती पर रहोगी तब तक अपनी जवानी को प्राप्त रहोगी यानी कि तुम कभी वृद्धावस्था को प्राप्त नहीं होगी

परंतु आते समय श्री कृष्ण भगवान ने पारिजात पेड़ का एक पुष्प ले आए थे जो कि उन्होंने आकर रुकमणी जी को दे दिया इस बात का सत्यभामा को पता चला तो वह बहुत ही दुखी हुई और सत्यभामा ने श्री कृष्ण को

यह कहां की वह उसे स्वर्ग से पारिजात का पेड़ ही लाकर दे

सत्यभामा जिद करने लगी तो श्रीकृष्ण ने इंदर से युद्ध कर पारिजात का पेड़ सत्यभामा को लाकर दे दिया

यह युद्ध इंद्र को भी सबक सिखाने के लिए किया क्योंकि उन्होंने एक समय भगवान श्री महादेव को भी पारिजात का पेड़ देने से मना कर दिया

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था इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का भी घमंड तोड़ने के लिए यह युद्ध किया पारिजात के पेड़ को देख करें सत्यभामा बहुत ही खुश हो गई और इस ख़ुशी में सत्यभामा ने

पुण्यिक व्रत करने का आह्वाहन किया और उनके पुरोहित नारदजी बने नारदजी ने सत्यभामा को यह कहा की यह व्रत तभी फलित होगा जब आप अपने मन की सबसे बड़ी और प्यारी चीज दान में दे

तो सत्यभामा ने श्री कृष्ण के आलावा सबसे ज्यादा न चाहने पर उन्होंने श्री कृष्णा के बारे में ही कहा की सबसे प्यारी यही वस्तु है तो नारद

के बहकावे में आकर के उन्होंने श्री कृष्ण का ही दान कर दिया और कहा की अगर कृष्ण के बदले

कोई दान दे तो आप कृष्ण को वापिस ले सकती है तो सत्यभामा मान गयी और कृष्ण का दान कर दिया नारद जी को उसके बाद सत्यभामा धन के अहंकार में आकर श्री कृष्ण भगवान को तोलने लगी

तो कृष्ण का पलड़ा हर बार भारी रह जाता पर कृष्ण के वजन के बराबर सोना , हीरे ,मोती , माणिक्य नही होते जितने पलड़े पर रखो उतने कम ही रहते ऐसा करते करते सत्य भामा हार गई घमंड टूट गया और वो कृष्ण को

वापिस नही पा सकने पर हार गयी तब रुकमणी सत्यभामा से कहने लगी

सत्यभामा की कठिन परीक्षा

की आप तुलसी का पता और आपके हाथ में जो अंगूठी है उसके साथ अपनी आत्मा भी कृष्ण को तुला में चढ़ा दो तो ही कृष्ण तुम्हारे हो जायेंगे

और तुला में वजन बराबर हो जायेगा सत्यभामा ने वेसा ही किया और कृष्ण तुला में तुल गये

इस तरह से कृष्ण ने सत्यभामा का घमंड तो तोड़ा तो किस तरह लगी सत्यभामा की कथा satyabhama story in hindi अगर आपको हमारा ये पोस्ट

अच्छा लगा तो आप हमे कमेन्ट करे और बताये की आपकी राय सत्यभामा के बारे में मिलते है अगले पोस्ट में तब तक जय श्री कृष्णा!

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