संतोषी माता की कहानी
santoshi mata ki katha एक समय की बात है एक बुढ़िया के 7 लड़के थे जिसमें से 6 लड़के कमाने वाले थे और एक लड़का कुछ नहीं करता था बुढ़िया 6 लड़कों को अच्छा खाना खिलाती थी
और सातवें लड़के को उन सभी का जूठा खाना मिलता था और वह सातवां लड़का अपनी मां की चलाकि को समझ नहीं पाया सातवां लड़का अपनी पत्नी से बोला कि मेरी मां मुझसे बहुत प्यार करती है
उसकी पत्नी बोली वह तुम्हें सबका बचा कुचा खाना खिलाती है इस बात पर उससे विश्वास नहीं हुआ एक दिन वह छुप कर देखता है की उसकी मां छ लड़कों को बड़ा अच्छा भोजन परोस रही है
जब है 6 लड़के खाना खा करें उठे तो उसकी मां सभी का जूठन इकट्ठा करने लगी और वह भोजन एक थाली में प्रोसे दीया सातवां लड़का आया
तो उसकी मां बोली की भोजन खा ले वह लड़का बोला नहीं मां मैं भोजन नहीं करूंगा मैं तो परदेस जा रहा हूं उसकी मां बोली कल जाता

आज ही चला जा यह सुनकर वह वहां से निकल गया और अपनी पत्नी के पास गया वह गोबर थाप रही थी वह बोला मैं शहर जा रहा हूं कुछ समय बाद आऊंगा
तुम संतोष से रहना और अपने धर्म का पालन करना इस पर उसकी पत्नी बोली स्वामी आप आनंद से जाइए मेरी चिंता मत करें मैं तो राम भरोसे यहां रह लूंगी भगवान आपकी सहायता करें आप मुझे कोई आपकी निशानी दे दो जिसे देखकर मैं धीरज करती रहूंगी
इस पर वह बोला इस अंगूठी के अलावा मेरे पास कुछ नहीं है तुम यह अंगूठी रख लो और मुझे कोई तुम्हारी निशानी दे दो इश् पर वह बोली मेरे पास कुछ भी नहीं है
बस यह गोबर से भरे हाथ है इस पर वह अपने पति के पीठ पर गोबर की छाप मार दी और वह वहां से चल दिया वह चलते-चलते कहीं दूर नगर में पहुंचा
और एक व्यापारी के दुकान पर जाकर बोला मुझे नौकरी पर रख लो व्यापारी को नौकर की जरूरत थी वह बोला रह जाओ पर तनख्वाह तुम्हारा काम देख कर दूंगा
वह काम पर लग गया सुबह 7:00 बजे से श्याम 9:00 बजे तक नौकरी करता वह थोड़े दिनों में व्यापारी का सारा काम करने लगा और लेन-देन उसके ही हाथ मैं था
कुछ ही दिनों में सेठ ने उससे आधे मुनाफे का अधिकार दे दिया वह 12 सालों में नामी सेठ बने गया उसकी पत्नी को सास और जेठाणिया बहुत कष्ट देने लगी जंगल में लकड़ी लेने के लिए भेजती भूसी रोटी देती सूखे नारियल में पानी देते
वह बड़े कष्टों से जीवन जी रही थी एक दिन वह लकड़ी लाने के लिए चली तो उसकी नजर एक मंदिर पर पड़ी वहां कुछ औरत व्रत कर रही है
और कथा सुन रही है उसने पूछा यह क्या व्रत कर रही हो इसके करने से क्या होता है और यह कैसे करते हैं एक औरत बोली यह संतोषी माता का व्रत है
इसके करने से मनवा चिक फल प्राप्त होता है गरीबी चिंता रोग आदि नष्ट होते हैं पुत्र और मनपसंद वर मिलता है रूठ के पति के दर्शन होते हैं उस औरत ने उसे सारी विधि बता दी
वह सारी लकड़ी बेचकर उन पैसों से गुड और चना खरीद लिया व्रत की तैयारी कर कर संतोषी माता के मंदिर में पहुंची
माता से दुखी होकर विनती करने लगी की मैं अज्ञानी हूं दुखी हूं मैं आपकी शरण मैं आई हूं मेरा दुख दूर करो मां वह हर शुक्रवार ऐसा ही करती
एक दिन माता को उस पर दया आ गई एक शुक्रवार उसके पति का पत्र आया अगले शुक्रवार उसके पति का भेजा धन उसे मिला
फिर वह माता के मंदिर में गई और माता के चरणों में गिरकर रोने लगी बोली मां मैंने पैसे कब मांगे मुझे तो अपना सुहाग चाहिए
मैं तो अपने स्वामी के दर्शन और सेवा करना मांगती हूं संतोषी मां प्रसन्न होकर बोली जा बेटा तेरे पति तुझे जल्द ही मिलेंगे वह प्रसन्न होकर घर गई
और कामकाज में लग गई उधर संतोषी माता उसके पति के स्वपन में आकर उसकी पत्नी की याद दिलाई और घर जाने को कहा वह बोला की अभी घर कैसे जाऊं
अभी तो लेन देन के काफी हिसाब बाकी है माता बोली सुबह उठ कर मेरा नाम लेना और गी का दीपक करना और फिर दुकान पर बैठना
वह सुबह उठ कर वैसा ही किया सबसे पहले वह माता का नाम लेता है और फिर गी का दीपक करें दुकान पर बैठता है देखते ही देखते सभी लेन देन हो गया
और धन का ढेर लग गया वह खुश होकर घर की ओर चला गया उधर उसकी पत्नी रोज सुबह लकड़ी लाने जाती और संतोषी माता की पूजा अर्चना करती
एक दिन वह बोली मां यह धूल कैसे उड़ रही है मां बोली बेटी तेरा पति आ रहा है तुम लकड़ियों के 3 ढेर बना एक नदी के किनारे रख दे और एक यहां रख दे
तीसरा अपने सर पर रखें ले तेरा पति तुझे देखकर अपने मन मैं मो पैदा होगा घर जाकर आवाज लगाना सासू मां लकड़ियों का घटा दो भूसे की रोटी दो टूटे नारियल में पानी दो आज मेहमान कौन आया है
यह सुनकर सास दौड़ी-दौड़ी आई और अपने कष्टों को बुलाने के लिए बोली बेटी तेरा पति आया है यह सब सुनकर उसका पति बाहर आया और अपने पत्नी के हाथ में दी हुई
अंगूठी देखकर बोला मां यह कौन है उसकी मां बोली बेटा यह मेरी बहू है यह है दिन भर गोमती फिरती रहती है कोई कामकाज भी नहीं करती है
तुझे देख कर नखरे कर रही है मां मैंने तुझे और इसे दोनों को देख लिया है अब मुझे दूसरे घर की चाबी दे दो मैं अब दूसरे घर में रहूंगा मां बोली ठीक है
जैसी तेरी मर्जी माने तो अभियो का गुच्छा पटक दिया बेटे ने अपना सारा सामान दूसरे घर में रख दिया देखते ही देखते
उनके राजा के समान ठाट बाट हो गए अगला शुक्रवार आया वह अपने पति से बोली मुझे संतोषी माता का व्रत करना है वह बोला खुशी से करो
सुबह तैयारियों में लग गई जेठ के लड़कों को खाना खाने बुलाया उसके जाने के बाद मिठाइयों ने उन बच्चों को सिखा दिया की तुम खाने के बाद खटाई मांगना
जिसके कारण उसका उद्यापन पूरा ना हो बच्चे खाना खाते ही कटाई मांगी वह बोली नहीं नहीं मैं तुम्हें कटाई नहीं दे सकती यह संतोषी माता का प्रसाद है
लड़के बोले तो हमें पैसे दे दो वह बोली बाली समझ नहीं सकी उन्हें पैसे दे दिए उन पैसों से वह कटाई खाने लगे और संतोषी माता क्रोधित हो गई
राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए वह बेचारी रोती हुई माता के मंदिर में गई और बोली माता यह क्या किया माता बोली
की पुत्री तुमने अभी मान कर मेरा व्रत तोड़ा है और इतनी जल्दी भूल गई माता मैंने तो कुछ भी गलत नहीं किया मैंने भूल से बच्चों को पैसे दे दिए मुझे क्षमा करें
मैं दुबारा तुम्हारा उद्यापन करूंगी माता बोली जा तेरा पति रास्ते में आता हुआ मिलेगा वह वहां से चली गई और उसका पति रास्ते में उसे आता हुआ दिखाई दिया
उसके पूछने पर उसका पति बोला मुझे राजा ने मिलने के लिए बुलाया था अगले शुक्रवार उसने माता का फिर से उद्यापन किया जेट के लड़कों को बुलाया
और जेठानी फिर उन्हें सिखा दिया की तुम खाने के बाद खटाई मांगना लड़के भोजन के पहले बोले खटाई मिलेगी वह बोली कटाई नहीं मिलेगी फिर वह ब्राह्मण के लड़कों को बुला कर खाना खिलाया और दक्षिणा दी और संतोषी माता उससे प्रसन्न हो गई
और 9 महीने बाद चंद्रमा के समान उसके सुंदर पुत्र हुआ वह अपने पुत्र को लेकर रोजाना मंदिर जाने लगी 1 दिन संतोषी माता नहीं सोचा की यह यहां रोज आती है
एक दिन मैं इसके घर जाती हूं और इसका ससुराल देखती हूं यह सोच कर संतोषी माता ने भयानक रूप धारण किया गुड़ और चने से सना मुख सूंड के समान हॉट जिन पर मक्खियां भिन्न- बिना रही थी
ऐसी सूरत में माता उसके घर गई वह घर में पैर रखते ही उसके सासु बोली देखो कोई चुड़ैल आ रही है उसे बताओ वरना किसी को खा जाएगी सभी घरवाले बात करें घर की खिड़की और दरवाजे बंद करने लगे उसने ऊपर की खिड़की से देखा
तो चिल्लाने लगी की आज मेरी माता मेरे घर आई है उसकी सास बोली पगली किस को देखकर उतावली हो रही है बच्चे को भी पटक दिया
बहु बली माताजी मैं जिस संतोषी माता का व्रत करती हूं यही वह माताजी है यह सुनकर उसने सभी खिड़की व दरवाजे खोल दिए और सभी ने संतोषी माता के चरण पकड़ लिए
सभी बोलने लगे हम अज्ञानी है मूर्ख हैं हम आपके व्रत की विधि नहीं जानते हमने आपके व्रत को बंग करें बहुत बड़ा अपराध किया है हे जगत माता हमारा अपराध क्षमा करें
फिर संतोषी माता बहुत खुश हुई हे संतोषी माता जिस प्रकार आपने बहू को फल दिया उसी प्रकार इस कहानी को पढ़ने वह सुनने वाले को आप उसी प्रकार खोल दें संतोषी माता का यह व्रत करने से धन दौलत पुत्र विवाह सभी में सहायता मिलती है