raja janak राजा जनक के बारे में जब भी हम सुनते है तो हमे एक ऐसे राजा की छवि दिखती है जिसमे संतोष और मर्यादा पूर्ण जीवन यापन किया
आज हम राजा जनक के बारे में आपको ऐसी कहानी बताएंगे जो आपने पहले नहीं सुनी होगी तो चलिए कहानी शुरू करते है
राजा जनक मिथिला नाम की नगरी में अपना राज्य करते थे इस लिए उन्हें मिथलेश भी कहा गया और जनक की पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा गया था

janak
कहते है एक बार मिथिला में आकाल पड़ा राजा जनक ने इसका निवारण हेतु ऋषियों का इसका उपाय पूछा तो सभी ने सोचकर कहा
की हे राजा अगर आप खुद ही हल चलाएंगे तो इसका निवारण होगा
अर्थात अकाल खत्म हो जायेगा ये सुनकर जब जनक ने जमीन पर हल चलाया तो उसका हल से एक कलश में लगी जो जमीन में था
और जब उस कलश को बाहर निकला तो उस कलश में से एक बच्ची मिली जो की सीता थी
हल के आगे के भाग को सीत कहते है इस लिए उस कन्या का नाम सीता हुआ और वह कन्या भविष्य में राजा राम की पत्नी बनी janak
राजा जनक की बेटियों के नाम
राजा जनक की दो पुत्री थी सीता और उर्मिला थी उनके पति राम और सीता तथा लक्ष्मण उर्मिला राजा जनक के भाई कुशध्वज की पुत्री मांडवी तथा श्रुतिकीर्ति थी जिनकी शादी भरत तथा शत्रुघ्न से करायी गयी
जब परशुराम को महादेव ने अपने सभी हथियार छोड़कर पुन एक ऋषि मुनि बनकर समाज सुधार के लिए कहा तो
परशुराम ने कहा की में इस विजय धनुष किसे दू जो आपने मुझे दिया तो भगवान ने कहा की तुम इसको दो पात्र है किसे भी दे दो
raja janak
और दोनों ही मेरे भक्त है एक रावण और एक राजा जनक तो परशुराम ने वो धनुष जनक को दिया
वह धनुष राजा जनक रोज पूजा करते थे उस धनुष को केवल राजा जनक और उनकी पुत्री सीता उठा सकते थे और कोई भी उस धनुष को नही उठा पाते थे
परशुराम जब राम और लक्ष्मण से आकर भिड़े थे क्योंकि वह धनुष वो ही था जो परशुराम को भगवान महादेव ने दिया था
जनक के गुरु अष्टावक्र थे जब राजा जनक के आदेश देने पर की जो भी मुझे सही शिक्षा देगा वो मेरा गुरु होगा तो अष्टावक्र ने ही
itihas ke janak kaun hai
हेरोडोटस को कहते है
राजा जनक को सही शिक्षा दी और उनके गुरु बने और अष्टावक्र ने गुरु दक्षिणा के रूप में राजा जनक से उनका मन माँगा था
raja janak राजा जनक ने राम को बार -बार सही रूप से समझाया राजा दशरथ की मृत्यु के बाद अर्थात एक पिता की भूमिका निभाई थी