janmashtami ka vrat | भगवान श्रीकृष्ण का शंख

janmashtami ka vrat जब श्री कृष्ण भगवान की शिक्षा पूरी हुई तो उनके गुरु सांदीपनि को श्री कृष्ण ने गुरु दक्षिणा मांगने के लिए कहा तो गुरु ने कुछ नहीं कहा तो

श्री कृष्ण ने फिर से कहा हे गुरु आपकी जो इच्छा हो वो मांगो तो गुरु माता ने श्री कृष्ण को कहा की मेरा एक ही पुत्र था उसे ही समुन्दर ने निगल लिया मुझे अपना पुत्र चाहिए

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तो श्री कृष्ण ने गुरु माता की इच्छा की पूर्ति के लिए चले गए समुन्दर के पास तो समुन्द्र ने कहा प्रभु मेने किसी को नहीं मारा मेरे जल में एक राक्षस है उसी ने आपके गुरु के पुत्र को खाया है

तभी कृष्ण बलराम सहित समुन्द्र के जल में उतरे और तभी उन्हें एक विचित्र शंख मिला तभी कृष्ण ने वहा जाकर देखा तो वह राक्षस उसी शंख में सोया हुआ था

भगवान श्रीकृष्ण के शंख का नाम क्या था

तब भगवान ने उस राक्षस का वध कर दिया और और चलने लगे तो उस शंख पर भगवान की फिरसे नज़र पड़ी तो कृष्ण ने उस शंख को बजाकर देखा तो उसकी ध्वनि बहुत ही सुन्दर थी

तो भगवान ने उस शंख को अपने पास रख लिया और उसका नाम पाञ्चजन्य रखा और कहा ये शंख जहा भी बजाय जायेगा वह धर्म की विजय होगी तो भगवान श्रीकृष्ण के शंख का नाम क्या था पाञ्चजन्य

janmashtami ka vrat उसके बाद गुरु पुत्र राक्षस के पेट से भी नहीं निकला तो भगवान ने अमरावती में जाकर यमराज से अपने गुरु पुत्र लिया और वापिस आकर के गुरु को गुरु पुत्र प्रदान दिया और इस तरह अपनी गुरु को भगवान ने गुरु दक्षिणा प्रदान की जय श्री कृष्णा

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