भगत हरिमेधा और सुमेधा की कथा| krishna ki kahani

आज की कथा बहुत ही प्यारी है जिसमे हम बतायेंगे की krishna ki kahani को भगवान ने किस प्रकार से दर्शन दिए और भगत हरिमेधा और सुमेधा ने केसे ब्रम राक्षस को मुक्ति दिलाई

भगत हरिमेधा और सुमेधा ने केसे की ब्रम राक्षस की मुक्ति

पुराने समय की बात है कश्मीर देश में सुमेधा और हरिमेधा नाम के दो ब्राह्मण रहते थे जो सदा से ही भगवान विष्णु के भजन में लगे रहते थे

भगवान मेंके वे परम भक्त थे उनके हृदय में सभी प्राणियों के प्रति दया भरी हुई थी

एक समय वे दोनों ब्राह्मण एक ही साथ तीर्थ यात्रा के लिए निकले चलते चलते वह किसी दुर्गम स्थान में पहुंचकर बहुत ही थक गए

वहीं एक स्थान पर उन्होंने तुलसी का पौधा देखा उनमें सुमेधा ने उस तुलसी के पौधे की परिक्रमा की और भक्ति पूर्वक प्रणाम किया यह देखकर हरि मेधा ने भी वैसा ही किया और सुमेधा से पूछा की भाई तुलसी का क्या महत्व है

सुमेधा ने कहा महाभाग्य चलो उस बरगद के पेड़ के नीचे चलते हैं वहां मैं तुम्हें सारी कहानी सुनाऊंगा यह कहकर सुमेधा बरगद की छाया में जा बैठे और हरिमेधा से बोले भाई पुराने समय में जब समुद्र का मंथन किया गया था

भगत हरिमेधा और सुमेधा
भगत हरिमेधा और सुमेधा

उस समय उससे अनेक प्रकार के दिव्य रतन प्रकट हुए थे अंत में भगवान विष्णु अपने हाथ में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए उस समय उनके नेत्रों से आंसुओं की धारा अमृत के ऊपर गिरी और तुलसी उत्पन्न हुई इस प्रकार समुंदर से प्रकट हुई

लक्ष्मी तथा अमृत से उत्पन्न हुई तुलसी को सब देवताओं ने हरि की सेवा में समर्पित कर दिया और भगवान ने उन्हें प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण किया तब से संपूर्ण देवता तुलसी की विष्णु भगवान के समान ही पूजा करते हैं

भगवान नारायण संसार के रक्षक है और तुलसी उनकी प्रियतमा है इसलिए मैंने उन्हें प्रणाम किया सुमेधा इस प्रकार तुलसी की महिमा बता ही रहे थे कि सूर्य के समान एक दिव्य विमान उनके निकट आज़ता हुआ दिखाई दिया

इस समय बरगद का पेड़ भी उखड़ कर गिर गया उससे दो दिव्य पुरुष निकले जो अपने तेज से संपूर्ण दिशाओं को प्रकाशित कर रहे थे

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उन दोनों ने सुमेधा और हरी मेधा को प्रणाम किया और अपना परिचय देते हुए कहा कि हम दोनों देवता है और अपने पूर्व पाप के कारण राक्षस होकर इस वट वृक्ष पर निवास करते हैं

आज आप के मुख से यह भगवान के विषय की चर्चा सुनकर तथा आप दोनों महात्माओंका संग पाकर हम दोनों इस पाप योनि से मुक्त हो गए हैं और हम अपने दिव्य धाम को जा रहे हैं

इस प्रकार वे हरिमेधा और सुमेधा को प्रणाम करके उनकी आज्ञा से विमान के द्वारा दिव्यलोक को चले गए वास्तव में भगवान के भक्तों के संघका ऐसा ही महत्व है

आज की कथा के बारे में आपका मत

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