सुग्रीव बाली की लड़ाई आज की कथा बड़ी ही मजेदार है जहा अंतिम क्षण तक सुग्रीव को डर रहता है तो भी सुग्रीव बाली की लड़ाई होती है सुग्रीव इतनी बार हारा है
तो भी वह लड़ता है क्योंकि उन्हें खुद से ज्यादा राम भगवान पर विश्वास है ऐसे है श्री राम
भगवान राम का जीवन इतना साधारण था की उसमे सभी प्रकार के रिश्ते नजर आते है
चाहे वह बेटे का हो या भाई का या पति का हो या पिता का और चाहे वह दोस्त का हो या स्वामी का हो तभी तो इन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहा जाता है
सुग्रीव बाली की लड़ाई रामायण में

प्रिय शाखा सुग्रीव श्री राम जी सुग्रीव से कहते हैं कि भैया सब भाई भरत के समान आदर्श नहीं होते सब पुत्र हमारी तरह प्रिय भगत नहीं हो सकते
और सभी हमारे दुख में साथी ही नहीं बन सकते हैं सब संबंधों की एक मात्र स्थान श्रीहरि का ही है
उनसे जो भी संबंध जोड़ा जाए उसे भी पुरानी बातें हैं सच्ची लगन होनी चाहिए और प्रेम होना चाहिए
प्रेम पाश में बंद कर प्रभु स्वामी बनते हैं वह सखा, मित्र, भाई, पुत्र सब कुछ बनने को तैयार हैं
उन्हें शिष्टाचार की आवश्यकता नहीं वह तो सच्चा प्रेम चाहते हैं सुग्रीव को भगवान ने स्थान पर अपना प्रिय सखा माना है बाली और सुग्रीव दो भाई थे
दोनों में बहुत ज्यादा प्रेम था बाली बड़ा था और सुग्रीव छोटा था इसीलिए बाली को वानरों का राजा बनाया गया एक बार एक राक्षस रात्रि में किष्ककंधा आया
आकर बड़े जोर जोर गरजने लगा बाली उसे मारने के लिए नगर से अकेला ही निकल पड़ा
रामायण बाली सुग्रीव का युद्ध
जब सुग्रीव को पता चला तो वह भाई के पीछे पीछे चला वह राक्षस एक बड़े भारी बिल में घुस गया
बाली अपने छोटे भाई को द्वार पर छोड़ कर उस राक्षस को मारने के लिए उसके पीछे गुफा में चला गया बाली और राक्षस की लड़ाई
सुग्रीव को बैठे-बैठे एक महीना हो गया किंतु बाली गुफा से बाहर नहीं आया एक महीने बाद गुफा में रक्त की धार निकली सुग्रीव ने समझा कि मेरा भाई मर गया है
अंतः गुफा को एक बड़ी भारी शिला से ढककर किस कंधा आ गया मंत्रियों ने जब राजधानी को राजा से हीन देखा तो उन्होंने सुग्रीव को राजा बना दिया
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कुछ समय के बाद जब बाली आया तो सुग्रीव को राजगद्दी पर बैठा देखकर आग बबूला हो गया
और उसे मारने को दौड़ा सुग्रीव अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए भाग गया भागते भागते वह मतंग ऋषि के आश्रम पर पहुंचा बाली वहां श्राप के कारण नहीं जा सकता था
अंतः वह लौट आया सुग्रीव का धन और स्त्री सभी उसने छीन लिया राज्य ,स्त्री और धन के हरण होने पर सुग्रीव अत्यंत दुखी होकर
हनुमान आदि चार मंत्रियों के साथ ऋषयमुक पर्वत पर रहने लगा सीता जी के हरण होने पर भगवान
सुग्रीव राम मिलन रामायण
श्री राम जी अपने भाई लक्ष्मण के साथ उन्हें खोजते खोजते शबरी के बताने पर रिश्यामूक पर्वत पर आए सुग्रीव ने उन्हें आते देख सामने हनुमान जी को भेजा
हनुमान जी ने आदर पूर्वक सुग्रीव जी के पास लाए राम जी और सुग्रीव में अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता हो गई
सुग्रीव ने अपना दुख भगवान को सुनाया भगवान ने कहा मैं बाली को एक ही बाण से मार दूंगा सुग्रीव ने परीक्षा के लिए अस्थि समूह दिखाया
श्री राम जी ने उसे पैर के अंगूठे से गिरा दिया फिर सात तारो को एक ही बाण से गिरा दिया सुग्रीव को विश्वास हो गया कि श्री राम जी बाली को मार देंगे
राम ने बाली को मारा
सुग्रीव को लेकर श्री राम जी बाली के पास गए बाली लड़ने आया रामायण बाली युद्ध दोनों में घमासान युद्ध हुआ अंत में श्री राम जी ने ऐसा बाण मारा
और बाली मार दिया रामायण बाली वध बाली के मरने पर श्री राम जी की आज्ञा से सुग्रीव राजा बन गए और बाली का पुत्र अंगद को युवराज का पद दिया गया
सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के लिए इधर उधर भेज रखा था और हनुमान जी द्वारा सीता जी
का समाचार पाकर सुग्रीव ने अपनी असंख्य वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई कर दी
वहां उन्होंने बड़ा ही पुरुषार्थ दिखाया सुग्रीव ने युद्ध में रावण तक को इतना छकाया कि वह भी इनके नाम से डरने लगा
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लंका पर विजय प्राप्त करके राम जी के साथ सुग्रीव जी भी अवधपुरी आ गए
राम जी ने वशिष्ठ जी को अपने प्रिय शाखा का परिचय कराया और कहा कि सुग्रीव जैसा निस्वार्थ शखा संसार में नहीं मिल सकता
थोड़े दिन बाद अवधपुरी से राम जी अपने धाम को पधारे तब वे भी आए और भगवान के साथ साकेत गए
सुग्रीव जैसे भगवान कृपा प्राप्त सखा संसार में नहीं मिल सकते उनका समस्त जीवन राम काज और राम शरण में ही बीता
आज की कथा में हमे पता लगा की सुग्रीव देखने में तो भगवान राम के सखा थे परन्तु सच में तो वे भगवान राम के भक्त थे और भगवान राम से मिलने के बाद उनमे इतना भरोसा आ गया
सुग्रीव बाली का युद्ध वीडियो
की उन्होंने अपने बलवान भाई बाली से लोहा ले लिया और सुग्रीव बाली की लड़ाई हुई और बाली भगवान के धाम पधारे जय श्री राम दोस्तों
आपको ये कथा केसी लगी कमेंट जरुर करे और मिलते है आगे की कथा में तब तक जय श्री राम !