कर्ण
महाभारत के महत्वपूर्ण पात्र एवं दानवीर कर्ण का जन्म कुंती माता को मिले एक वरदान से हुआ था कुंती माता के घर एक ऋषि तपस्या के लिए आए जिनकी सेवा का भार माता कुंती को सौंपा गया। karan kiska putra tha
जब तक ऋषि की तपस्या संपूर्ण नहीं हुई तब तक माता कुंती ने उनकी सेवा की जिससे ऋषि प्रसन्न होकर माता कुंती को वरदान दिया कि जब भी तुम सूर्य देव को पुकारो गी तब तुम्हें उनसे वरदान के रूप में एक बालक प्राप्त होगा।
जो अपने साथ कुंडल तथा सुरक्षा कवच लेकर आएगा जिसके कारण उसे पराजय करना मुश्किल होगा ।उन्होंने कर्ण के जन्म से पूर्व ही कर्ण के नाम का नामांकन कर दिया था
उन्होंने कहा था कि सूर्य देव से तुम्हें एक दानवीर और पराक्रमी बालक करण प्राप्त होगा। भगवान सूर्य को करण के नाम से भी जाना जाता है कर्ण का जन्म भगवान सूर्य की कृपा से हुआ था

इसीलिए करण का नाम करण रखा गया था ।माता कुंती ने विवाह से पूर्व ही भगवान सूर्य देव का आह्वान किया और उनसे एक बच्चा मांग लिया
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उन्हें वरदान के अनुसार माता कुंती की इच्छा पूरी हुई लेकिन लोक लाज और अपनी इज्जत के कारण माता कुंती ने दानवीर कर्ण को एक डिब्बे में रखकर एक नदी में पर दिया।
कर्ण का बचपन में नाम राधेय था क्योंकि वह अपनी मां से बहुत प्यार करता था और कर्ण की मां का नाम राधे था जिस ने कर्ण को जन्म तो नहीं दिया बल्कि उसे बचपन से पाला था
करण को अपना पुत्र ही माना था और उसका लालन-पालन किया था। दानवीर कर्ण जब गुरुकुल में शस्त्र विद्या सीखने गई तब उसके गुरु ने करण को करण नाम दिया।
करण का लालन-पालन एक निम्न परिवार में हुआ । निम्न परिवार लोगों को शिक्षा नहीं दी जाती थी लेकिन करण शस्त्र शिक्षा लेना चाहता था उसने महा योद्धा परशुराम को झूठ बोला कि वह एक ब्राह्मण का पुत्र है
उसके बाद परशुराम करण को शिक्षा देने के लिए मान गए। परशुराम ने कर्ण को संपूर्ण शिक्षा शास्त्र विद्या एवं शस्त्र चलाना
सिखाया फिर उसके बाद जब एक दिन परशुराम को यह पता चल गया कि करण निम्न वर्ग का बालक है जिससे क्रोधित होकर परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि मेरे द्वारा सिखाई गई
सारी विद्या तुम्हारे उस समय किसी काम नहीं आएगी जिसमें तुम्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत होगी। परशुराम से शिक्षा लेने के बाद करण एक महान योद्धा के रूप में समाज में उभर गए।
महाभारत के संग्राम के समय करण से कोई धनुर्विद्या में बड़ा नहीं था करण को पराजय करना मुश्किल ही नहीं असंभव था लेकिन गुरु परशुराम की श्राप के कारण करण अपनी सारी धनुर्विद्या भूल गया
जिसके कारण अर्जुन के हाथों कर्ण की मृत्यु हो गई। कर्ण दुर्योधन का परम मित्र था दुर्योधन ने कर्ण को कुछ राज्यों का राजा घोषित कर दिया था
जिसके कारण करण ने दुर्योधन को वचन दिया दुख और सुख में मैं तुम्हारे साथ रहूंगा तुम्हारे किसी भी प्रकार के कार्य में मैं तुम्हारा सहयोग करूंगा
जब महाभारत का संग्राम कौरवों तथा पांडवों के मध्य हुआ तब उसने दानवीर कर्ण ने दुर्योधन के पक्ष में होकर
अहम भूमिका निभाई लेकिन परशुराम के श्राप के कारण वह सही समय आने पर अपनी सारी विद्या भूल गया जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई।करण एक महान योद्धा था
स्कोप राज्य करना असंभव था क्योंकि वह भगवान परशुराम का शिष्य था करण महान पराक्रमी होने के साथ-साथ दानवीर भी था जिसे कारण उसका नाम दानवीर कर्ण भी था।