दानवीर कर्ण आई ऐसा करने पर भानुवती के साथ ही उनकी सहेली का भी हरण हो गया तो जब कर्ण और दुर्योधन दोनों को लेकर अंगराज्य में पहुचे तो भानुवती
के आग्रह करने पर की मेरे साथ मेरी सहेली का भी हरण हुआ है इस लिए मेरे साथ सुप्रिया का विवाह भी होना चाहिए

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कर्ण की पत्नी का नाम
तो दुर्योधन और भानुवती के बल देने पर कर्ण को सुप्रिया से विवाह करना पड़ा तो कर्ण की पत्नी का नाम सुप्रिया था और उन से उनका पुत्र हुआ
जिनका नाम ब्रह्स्थ था तो कर्ण के पुत्र का नाम ब्रह्स्थ था कर्ण का पुत्र कर्ण की तरह ही बहुत ही प्रतापी था और महान धनुर्धर योद्धा था और कर्ण की ही भांति
ब्रह्स्थ ने भी महाभारत जेसे महान युद्ध में भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुआ और अंगराज कर्ण भी महाभारत के युद्ध में ही वीरगति को प्राप्त हुए
महारथी कर्ण के पास एक अभेद्य कवच था जो कि उन्हें यह कवच उनके पिता की कृपा से प्राप्त हुआ था महारथी कर्ण को कवच जन्म से ही उनके साथ मिला था
दानवीर कर्ण को कवच और कुंडल यह दो चीज जन्म से प्राप्त थी जब भी कर्ण पर कोई भी विपता आती तो यह कवच और कुंडल उनकी रक्षा करते कर्ण के पिता का नाम सूर्य देव था

कर्ण के गुरु कौन थे
कर्ण जो कि एक महान धनुर्धर था क्योंकि कर्ण के गुरु का नाम परशुराम था परशुराम भगवान ने 21 बार धरती को क्षत्रियों से विहीन किया है जब कर्ण परशुराम से शिक्षा प्राप्त करने गए
तो उन्हें एक झूठ का सहारा लेना पड़ा वह झूठ परशुराम के सत्या का तेज नहीं सह सका इसी के कारण कर्ण की मृत्यु हुई करण ने कहा कि वह ब्राह्मण है
क्योंकि कर्ण और परशुराम से शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे और परशुराम केवल ब्राह्मणों को शिक्षा देते थे जब परशुराम को सत्य का पता चला तो इसलिए परशुराम ने उन्हें श्राप दिया
कि जब तुम्हें मेरी विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब तुम्हें मेरी विद्या का कोई भी अक्सर याद नहीं रहेगा जब करण और अर्जुन का महाभारत में युद्ध चल रहा था
दानवीर कर्ण का अंतिम दान क्या था
तभी अंतिम क्षणों में करण की शिक्षा समाप्त हो गई तभी अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया इस युद्ध से पहले भगवान इंदर ने कर्ण से उनके कुंडल और कवच दान में ले लिए क्योंकि उन्हें भय था
की अगर कर्ण से उनके कुंडल और कवच नहीं लिए तो कर्ण का मरना लगभग असंभव है तो ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि अर्जुन के पिता का नाम इन्द्र है इस दान के बाद कर्ण को दानवीर कर्ण से विख्यात हुए
karna of mahabharata
कर्ण अपने वचन पर अडिग रहने वाले महान योद्धा थे कर्ण ने जातिवाद के खिलाफ़ युद्ध लड़ा जो ऊँच नीच के खिलाफ़ था कर्ण जन्म को नही बल्कि कर्म को महान मानते थे
गरीबी के आगे सभी ने घुटने टेके चाहे आप गुरु द्रोणाचार्य को लो या क्रिपाचार्य लेकिन कर्ण ने हालात के आगे घुटने नही टेके बल्कि सामने करने की सिख दी हां एक काम कर्ण से गलत हुआ
जो कर्ण ने युर्योधन का हाथ थामा वही अगर वे धर्म का पक्ष लेते तो आज महाभारत का वाक्य अलग होता मेरा नमन है एसी विभूति को अगर कथा अच्छी लगे तो आप कमेन्ट करे जय श्री राम!

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