jatayu ke bhai ka naam

जटायु की जीवन कथा
प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए गरुड़ और अरुण/ अरुण जी सूर्य के सारथी हुए संपाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे

बचपन में संपाती और जटायु सूर्य को प्रणाम करने के लिए लंबी उड़ान भरी सूर्य के अधिक ताप होने के कारण व्याकुल जटायु बीच से ही वापस लौट आया परंतु संपाती उड़ता ही गया (jatayu ke bhai ka naam)

सूर्य के पास पहुंचने के कारण संपाती के पंख जल गए और वह नदी के तट पर गिर कर बेहोश हो गए चंद्रमा नामक मुनि ने उन पर दया कर उनका उपकार किया और त्रेता में सीता जी की खोज करने वाला बंदरों के दर्शन से उनके पंखे वापस पहले जैसे हो जाएंगे

ऐसा आशीर्वाद दिया

जैन धर्म अनुसार राम सीता तथा लक्ष्मण दंडकारण्य मैं थे उन्होंने देखा कुछ मुन्नी आकाश से नीचे की ओर आ रहे हैं उन तीनों ने मुनियों को प्रणाम किया

और उनका पालन किया वहां बैठे एक गिद्ध उनके चरणों में आ पड़ा साधु ने बताया कि पूर्व काल में दंडक नामक एक राजा था उनके राज्य में एक परिव्राजक था

एक बार वह रानी से बातचीत कर रहा था राजा ने उन्हें देखा तो गाय बहुत क्रोधित हुए और उन्हें मरवा डाला

एक सरवन बाहर गया हुआ था वापस लौटने पर समाचार ज्ञात हुआ

तो उसके शरीर से ऐसी क्रोध अग्नि निकली की जिससे समस्त स्थान भसम हो गए राजा के नाम अनुसार इस स्थान का नाम दंडकारण्य रखा गया

मुनियों ने उस दिव्य गिद्ध की सुरक्षा का बार राम और सीता को सौंप दिया उनके पूर्व जन्म के विषय मैं बता कर

उसे धर्मो प्देश भी दीय रत्नाभ जटायु हो जाने के कारण वह जटायु नाम से विक्रांत हुआ

अगले पन्ने में जटायु और राम का मिलन
क्यों और कैसे

जब जटायु पंचवटी में रहते थे

तब एक दिन
आखेट के समय महाराज दशरथ से उनकी मुलाकात हुई तभी से दोनों आपस मैं मित्र बन चुके वनवास के समय भगवान श्री राम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे तब पहली बार उनका जटायु से परिचय हुआ
भगवान

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