गोवर्धन उत्तर प्रदेश के मथुरा जिला के अंतर्गत एक नगर पंचायत है।गोवर्धन व इसके आसपास के चित्र को बृज भूमि कहा जाता है। govardhan parikrama distance
यह भूमि भगवान श्री कृष्ण की लीला भूमि है।यहीं पर द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के प्रकोप से ब्रिज वासियों को बचाने के लिए अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया था।
गोवर्धन पर्वत को भगत जन गिरिराज पर्वत भी कहते हैं।भगत जन गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करने के लिए दूर-दूर से आते हैं।हिंदू धर्म में यह मान्यता है

कि गिरिराज पर्वत की परिक्रमा कर जो भी इच्छा होती है वह पूरी होती है।हर दिन हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करते हैं।
श्रद्धालु 21 किलोमीटर की परिक्रमा पूरी कर भगवान श्रीकृष्ण से अपनी मनोकामना पूर्ण कराते हैं।हर साल श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए गिरिराज पर्वत की परिक्रमा करते हैं।
हजारों वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को गोवर्धन पूजा करने के लिए प्रेरित किया था।तब से भगत जनों द्वारा इस पर्वत की पूजा की जा रही है।
गोवर्धन परिक्रमा को किसी भी समय प्रारंभ किया जा सकता है। गोवर्धन परिक्रमा नंगे पांव की जाती हैं। सच्चे मन से की गई परिक्रमा व्यक्ति की मनोकामना पूरी करती है।
भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को भगवान का रूप बताया है।आज भी गोवर्धन पर्वत चमत्कारी है वहां पर जाने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती है।
गोवर्धन परिक्रमा करने से व्यक्ति के पास धन की कोई कमी नहीं रहती है। और उसका पूरा जीवन सुखी रहता है।शास्त्र के अनुसार इस पर्वत पर सुंदर पेड़ झरने और रतन थे।
इसी कारण राधा जी इस पर्वत की ओर आकर्षित हुई थी।इस पर्वत की परिक्रमा करते समय मुख्य में भगवान श्री किशन का नाम और हृदय में उनकी छवि तथा हाथ में भगवान को अर्पित करने के लिए ताजे फल होना चाहिए।
नंद गांव
वर्तमान समय में नंदगांव दिल्ली से मथुरा जाने वाली सड़क पर स्थित है। नंदगांव मथुरा से 50 किलोमीटर तथा बरसाना से 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
नंदगांव में भगवान श्री कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था। नंदगांव नंदेश्वर पहाड़ी पर स्थित है। नंद गांव में रहकर भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन की बहुत सी लीलाएं की।नंदीश्वर पहाड़ी की तलहटी में पावन सरोवर स्थित है
जहां पर मां यशोदा भगवान श्री कृष्ण को स्नान कर आती थी। पावन सरोवर से कुछ ही दूरी पर वृंदा कुंड स्थित है। वृंदा कुंड पर सुबह के समय में भगवान श्री कृष्ण और राधा मिलते थे।
नंदीश्वर पहाड़ी के अंतिम शिखर पर चरण पहाड़ी स्थित है जहां पर वर्तमान समय में भी भगवान श्री कृष्ण के चरणों के निशान हैं।
गांव में निर्मित भगवान श्री कृष्ण के मंदिर को देखने के लिए भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए हजारों श्रद्धालु यहां आते रहते हैं।
नंद गांव में प्रचलित एक प्रथा जो वर्तमान समय में भी चल रही है नंद गांव में वृंदावन वासी आज भी पानी नहीं पीते हैं क्योंकि नंद गांव को राधा का ससुराल मानते हैं।
नंद गांव मैं भगवान श्री कृष्ण का घर नंद महल कहलाता है। नंद महल के निकट नंद बैठक स्थित है जहां पर नंद बाबा मुद्दे पर विचार विमर्श करते थे।
नंद गांव वर्तमान समय में भी बहुत ही सुंदर एवं मनोहारीक स्थल है।।
मथुरा मंदिर
मथुरा मैं स्थित भगवान श्री कृष्ण के मंदिर को देखने के लिए प्रतिदिन लाखों लोग आते हैं।
मथुरा में अनेक सुंदर एवं मनोहारी मंदिर निर्मित है। जो भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है। मथुरा में विश्राम घाट और जमुना रानी का सुंदर मंदिर स्थित है।
मथुरा में स्थित इस्कॉन मंदिर बहुत ही सुन्दर है। इस मंदिर में कदम रखने से शांति की अनुभूति होती है।मथुरा के मंदिरों में द्वारकाधीश मंदिर की प्रमुख भूमिका है।
इस मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की सुंदर मूर्ति स्थापित हैं ।मंदिर के अंदर बहुत ही सुन्दर नकासी चित्रकला मूर्तियां हैं।
प्रेम मंदिर
वृंदावन में स्थित प्रेम मंदिर का निर्माण हिंदू गुरु आध्यात्मिक कृपालु जी महाराज द्वारा कराया गया।
कृपालुजी महाराज ने इस मंदिर का शिलान्यास 14 जनवरी 2001 को किया था। और यह 17 फरवरी 2012 को पूर्ण रूप से बनकर तैयार हो गया था।
प्रेम मंदिर चोपन एकड़ में स्थित है। इसकी ऊंचाई 125 फुट है। इस मंदिर के निर्माण में ईटादा संगमरमर का प्रयोग किया गया है। प्रेम मंदिर की दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है।
इस मंदिर को बनाने में 11 वर्ष का समय लगा था तथा 100 करोड रुपए उनकी लागत हुई थी। इस मंदिर में 156 स्तंभ है जिन्हें राधा कृष्ण की मूर्तियों द्वारा सजाया गया है।
प्रेम मंदिर में श्री कृष्ण की अनेकों मूर्तियां हैं । प्रेम मंदिर मे पूतना का वध करते समय की मूर्ति भी है। प्रेम मंदिर वृंदावन के सभी मंदिरों से प्रमुख है।
वृंदावन का प्रेम मंदिर प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। प्रेम मंदिर राधा कृष्ण और सीताराम को समर्पित है। प्रेम मंदिर में आरती के समय भक्तों की बहुत भीड़ होती है।
प्रेम मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के बचपन की लीलाओं का सुंदर चित्रण किया गया है। प्रेम मंदिर अपनी सुंदरता के कारण पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है।
के लिए भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए ठाकुर जी को हर समय अपने साथ रखना चाहिए इस प्रकार ठाकुर जी की सेवा कर उनका आशीर्वाद पाना चाहिए।
बिना असंभव है।सूर का अलंकार विज्ञान उत्कृष्ट है। उसमें शब्द चित्र उपस्थित करने एवं प्रसंगों की वास्तविक अनुभूति कराने की पूर्ण क्षमता है।
सूर ने अपने काव्य में अन्य अनेक अलंकारों के साथ उपमा उत्प्रेक्षा और रूपक का कुशल प्रयोग किया है। सूर्य की भाषा बृज भाषा है।
साधारण बोलचाल की भाषा को परिष्कृत कर उन्होंने उसे साहित्यिक रूप प्रदान किया है। उनके काव्य में बृज भाषा का स्वाभाविक, सजीव और भावना कुल प्रयोग है।
सूरदास के सभी पद गए हैं और वह किसी न किसी राग से संबंधित है। उनके पदों में काव्य और संगीत का अपूर्व संगम है
इसीलिए सूरसागर को राग सागर भी कहा जाता है। सूर सरावली और साहित्य लहरी सूरदास की अन्य प्रमुख काव्य कृतियां हैं।
सूरदास ने कृष्ण के जन्म से लेकर मथुरा जाने तक की कथा और कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का वर्णन अपनी सहजता मनोवैज्ञानिक ता और स्वभाव एकता के कारण अद्वितीय है।
सूरदास मुख्यतः वात्सल्य और श्रृंगार के कवि हैं। सूरदास का वात्सल्य का सम्राट कहा जाता है। सूरदास ने अपनी रचनाओं में भावों को बृज भाषा के माध्यम से व्यक्त किया है।
सूरदास के 1 पद से प्रभावित होकर वल्लभाचार्य ने सूरदास को अपना शिष्य बना लिया। सूरदास को बल्ब आचार्य श्री नाथ के मंदिर में भजन कीर्तन और सेवा का भार सौंप दिया।
इनकी प्रमुख रचना सूरसागर में संसार का साभार है। साहित्य लहरी में श्री कृष्ण की बाल लीलाएं तथा कहीं-कहीं महाभारत का वर्णन है। सूरदास के विवाह को लेकर भी विद्वानों में मतभेद है।
कुछ विवाहित मानते हैं और कुछ नहीं। सूरदास कृष्ण भक्ति और समाज सेवा करते हुए स्वर्गवास हो गए। सूरदास की साहित्य में प्रमुख प्रधानता आज भी विद्यमान है।
के लिए भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए ठाकुर जी को हर समय अपने साथ रखना चाहिए इस प्रकार ठाकुर जी की सेवा कर उनका आशीर्वाद पाना चाहिए।