धर्म क्या है धर्म कितने प्रकार के होते हैं धर्म का शाब्दिक अर्थ है क्या है इसके प्रश्नों का जवाब हम देंगे इस से लेकर विस्तार से इसलिए आपन तक बने रहे(dharm kya hai)
धर्म का शाब्दिक अर्थ है
धारण करने के योग्य अब आपके मन में प्रश्न आते हो कि हम क्या धारण करें किस चीज को दान करें तो हम बताते हैं कि हिंदू धर्म के अंदर महाभारत प्रसिद्ध ग्रंथ के अंदर कहा गया है कि कर्म करते रहो
दया सत्य उदारता है दान विद्या यह धर्म है जिसका अर्थ है धारण करने के योग्य सत्य आप सत्य बोलते हो सत्य धारण करने के योग्य उदारता ध्यान करने के योग्य विद्या धारण करने के योग्य कर्म में लगे
रहना कर्म करते रहना हर समय धारण करने के योग्य फल की इच्छा मत करना क्योंकि जैसा आप कर्म करोगे वैसे ही आपको फल प्राप्त होगा
इन शब्दों के अलावा अगर आप धारण करते हो

जैसे असत्य असत्य से कुर्ता ए विद्या विद्या हिना अज्ञानी आदि का विकास विकास होता है समाज के अंदर हिस्सा बढ़ जाती है
वह बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है इसलिए इन शब्दों के अलावा धारण करने वालों को धर्म के अंदर स्थान है दिया जाता है इन लोगों की की बुद्धि से समाज भयभीत होता है
आपके मन में प्रश्न उठता होगा कि धर्म चार है हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई दरअसल आपको जानकारी के लिए बता दिया यह धर्म नहीं है यह संप्रदाय है
duniya ka sabse purana dharm kaun sa hai
संप्रदाय परंपराओं द्वारा अनुयायियों द्वारा दिए गए नियम पर चलता है
धर्म के प्रकार
धर्म दो प्रकार के होते हैं धर्म का अर्थ है दान करने के योग्य हमारे पास धारण करने के योग्य दो ही चीज है
एक आत्मा और शरीर आत्मा है हमें आत्मा को शरीर चाहिए कर्म करने के लिए मन ही बंधन है इसे ही मोक्ष प्राप्त करने का प्राप्त होता है इसीलिए धर्म धारण मन से किया जा सकता है
मनुष्य ही कर्म किया जाता है
धर्म धारण करने के योग्य है इस पर हम बात की है अब आत्मा को धर्म में क्या धारण करना चाहिए आत्मा क्या धारण करने के योग्य आत्मा परमात्मा को धारण करने के लिए उठ योग्य है धर्म आत्मा का धर्म बनता है
कि वह परमात्मा को धारण आत्मा परमात्मा का धारण करेंगी तभी उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी जीवन सफल होगा|
आशा करता हूं
आपको उस धर्म के बारे में अच्छी तरह जानकारी प्राप्त हो गई है इस टॉपिक पर हम विदा लेते हैं मिलते हैं अगले टॉपिक पर