भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं जब अर्जुन युद्ध करने से मना कर देता है
तो श्री कृष्ण कहते हैं किए क्षत्रिय होने के नाते विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें यह जानना चाहिए की युद्ध करते समय तुम्हारे लिए इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है।

इसके अलावा तुम्हारे लिए कोई भी कार्य नहीं है।धर्म के लिए जो काम सबसे बड़ा होता है वह करना चाहिए।इसलिए तुम्हें संकोच करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
श्री कृष्ण कहते हैं कि वह क्षत्रिय भाग्यशाली हैं जिन्हें युद्ध करने के ऐसे अवसर अपने आप मिल जाते हैं।जिससे उनके लिए स्वर्ग लोक के द्वार खुल जाते हैं।
यदि तुम युद्ध करने के धर्म को संपन्न नहीं करोगी पूरा नहीं करोगी।तो निश्चित रूप से तुम्हें अपने कर्तव्य की अपेक्षा करने का पाप लगेगा।
और तुम योद्धा के रूप में भी अपना यश खो दोगे।सभी लोग तुम्हारे यश का वर्णन करेंगे।और सम्मानित व्यक्ति के लिए यह मृत्यु से भी बढ़कर है।
जिन जिन योद्धाओं महापुरुषों ने तुम्हारे यश को सम्मान दिया है। वह सभी यही सोचेंगे कि तुमने डर के मारे युद्ध को छोड़ दिया है
क्षत्रिय धर्म
।इस कारण वे लोग तुम्हें तुच्छ मानेंगे अर्थात उनकी नजरों में तुम्हारा समान कम हो जाएगा।तुम्हारे शत्रु अनेक कटु वचनों से तुम्हारा वर्णन करेंगे।
और तुम्हारे सामर्थ्य का उपहास करेंगे।तुम्हारे लिए इससे दुखदाई बात क्या हो सकती है।तुम यदि युद्ध में मारे जाओगे तो तुम स्वर्ग लोक को प्राप्त करोगे।
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और विजय को प्राप्त करोगे तो पृथ्वी प्रशासन का संभोग करोगे।इसलिए दृढ़ संकल्प लेकर तुम खड़े हो अपने शत्रु से युद्ध करो और विजय को प्राप्त करो।
जिस प्रकार किसी कपड़े का कभी न कभी पटना निश्चित है उसी प्रकार मनुष्य का भी मृत्यु निश्चित है तो फिर इस बात का किस्सा शोक। तुम्हें मृत्यु से नहीं घबराना चाहिए
क्योंकि यह है आज नहीं तो कल आनी ही है तुम्हें अपने क्षत्रीय धर्म के कर्तव्य को स्मरण करते हुए युद्ध करना चाहिए।
अगर तुम विजय प्राप्त करोगे तो तुम्हें समाज में सम्मान मिलेगा समाज के लोगों की नजरों में तुम्हारा आदर बढ़ेगा और अगर तुम इस युद्ध में मारे गए तुम स्वर्ग को प्राप्त करोगे
अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो तुम्हारा यस लोगों की नजरों में कम हो जाएगा तुम्हें कायर की बनती पुकारा जाएगा।
क्षत्रिय कौन है
इसलिए ए क्षत्रिय का धर्म होता है युद्ध करना अगर वह एक क्षत्रिय योद्धा है क्षत्रिय धर्म का पालन करता है तो वह युद्ध के परिणाम को देखकर पीछे नहीं हटता फिर चाहे उस युद्ध का परिणाम विजय हो या मृत्यु हो।
अगर एक क्षत्रिय जनता की नजरों में अच्छा व्यक्ति होता है वह समाज में एक अच्छी दृष्टि से देखा जाता है या उसने किसी लोक कल्याण के लिए कार्य किया हो
तो उसे इतिहास में भी महत्वपूर्ण स्थान मिलता है। क्षत्रिय को समाज में महत्वपूर्ण स्थान तभी मिलता है जब वह अपने धर्म को निभाते हुए
समाज का कल्याण करें नए की अपनी शक्ति का उपयोग करके समाज के लोगों का शोषण करें उन पर अत्याचार करें तो वह व्यक्ति एक सच्चा क्षत्रिय नहीं होता है।
क्षत्रिय का धर्म होता है युद्ध करना अगर वह एक क्षत्रिय योद्धा है क्षत्रिय धर्म का पालन करता है तो वह युद्ध के परिणाम को देखकर पीछे नहीं हटता
श्री कृष्ण कहते हैं किए क्षत्रिय होने के नाते विशिष्ट धर्म का विचार करते हुए तुम्हें यह जानना चाहिए की युद्ध करते समय तुम्हारे लिए इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है।
क्षत्रिय योद्धा को अपने धर्म के कर्तव्य को याद रखते हुए लोक कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए।