ब्रह्मराक्षस हिंदू धर्म के अनुसार ब्रह्मराक्षस नर की आत्मा या राक्षस है।यह अतिरिक्त आत्माओं की श्रेणी में आते हैं।ब्रह्मराक्षस असल में ब्राह्मण की आत्मा होती है।
जो जन्म तो ब्राह्मण कुल में लेती है लेकिन बुरे कर्म करने लगती है। उन्हें मरने के बाद राक्षस योनी में भटकना पड़ता है। इसकी वजह अपनी विद्या का गलत इस्तेमाल करना भी हो सकता है।
ब्राह्मण समाज में उच्च ज्ञानी का जन्म इसलिए होता है ताकि वह दूसरों को प्रशिक्षित कर सके। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो वह मृत्यु के बाद ब्रह्मराक्षस बन जाता है।
ब्रह्मराक्षस बनने के बाद उनमें ज्ञान का स्तर इतना ही रहता है लेकिन वह इंसान को खाने लगता है। ब्रह्मराक्षस में ब्राह्मण और राक्षस दोनों के ही गुण होते हैं। हिंदू धर्म के पुराणों में इनका विस्तृत वर्णन है।
ब्रह्मराक्षस में अनेक शक्तियां होती हैं। बहुत कम लोग ही इन्हें अपने नियंत्रण में कर सकते हैं। उन्हें इस योनि से मुक्ति दिला सकते हैं। ब्रह्मराक्षस और बुरी आत्माओं के पास बुरी प्रवृत्ति होती है

जिसके कारण पेड़ पौधे सूखने लगते हैं। कई पुराणों में लिखा गया है कि ब्रह्मराक्षस जिस इंसान पर प्रसन्न हो जाते थे उसके पास धन वैभव शांति की कोई कमी नहीं रहती थी।
ब्रह्मराक्षस उल्टे लटके रहते थे जैसा कि विक्रम वेताल में वर्णित है। दक्षिण भारत में प्रचलित ब्रह्मराक्षस की कहानी के अनुसार हिंदू मंदिरों इनका वर्णन करते हुए मिलते हैं।
कहीं-कहीं पर इन्हें सम्मान दिया जाता है और इनकी मूर्ति के आगे तेल का दिया भी जलाया जाता है। कई मंदिरों में ब्रह्मराक्षस को भगवान के समान पूजा जाता है।
ब्रह्मराक्षस ब्राह्मण कुल से उत्पन्न होते हैं इसके कारण अन्य आत्माओं की तुलना में इनमें शक्तियां तथा बुद्धि अधिक होती है।
इसके कारण इन्हें काबू में करना बहुत मुश्किल होता है। इनकी मूर्ति स्वयं ब्रह्मा है क्योंकि इनका उद्भव ब्रह्मा से ही हुआ है।
माना जाता है कि पीपल का वृक्ष ब्रह्मराक्षस को आबादी के दूर रखने के लिए होता है। अन्य मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मराक्षस को पीपल का वृक्ष बहुत अधिक प्रिय होता है
जिस पर वह निवास करते हैं।अगर पीपल का वृक्ष हटा दे तो ब्रह्मराक्षस क्रोधित हो जाते हैं। ब्रह्मराक्षस ब्राह्मण कुल से उद्भव के कारण यह अन्य वृक्ष पर नहीं रह सकते
क्योंकि अन्य वृक्ष निम्न श्रेणी के होते हैं। ब्रह्मराक्षस को पहचानना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि यह किसी का रूप धारण कर सकते हैं। ब्रह्मराक्षस किसी को हानि भी पहुंचा सकते हैं
या किसी को नुकसान भी कर सकते हैं। क्योंकि इनके अंदर देव और दानव दोनों के गुण होते हैं। ब्रह्मराक्षस को किसी तंत्र मंत्र या किसी अन्य विद्या से नहीं हटाया जा सकता
क्योंकि यह इन सभी क्रियाओं में निपुण होते हैं। ब्रह्मराक्षस को गीता के पाठ तथा गायत्री मंत्र के गायन मनन चिंतन के द्वारा मुक्ति दिलाई जा सकती है।