आशीर्वाद
हिंदू संस्कृति में और संस्कारों में आशीर्वाद बहुत माना जाता है मान्यता ऐसी है कि बड़े बड़े बुजुर्गों के या साधु संतों के साष्टांग नमस्कार या आशीर्वाद लेना चाहिए
साष्टांग नमस्कार का अर्थ यानी कि शरीर के आठ अंग जमीन पर टेक कर पूरा लेट कर प्रणाम करना चाहिए कहते हैं भगवान का आशीर्वाद टूट सकता है
लेकिन किसी के मन से निकला आशीर्वाद खाली नहीं जाता तो मैं आपको आशीर्वाद के रिलेटेड या मिलती-जुलती एक कहानी बता देता हूं

हिरण्यकश्यव नामक असुरलोग का एक राजा था उसने घोर तपस्या की भगवान ब्रह्मा की और भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा वह अमर हो
जाए और फिर भगवान ने कहा कि यह वरदान मैं तुमको नहीं दे सकता हुं क्योंकि जन्म के बाद मृत्यु निश्चित है
तब हिरण्यकश्यव ने भगवान से कहा कि मेरी तपस्या के फल के रूप में मुझे आप यह वरदान दो मैं दिन में ना मरू और ना ही रात में घर नहीं
या घर के बाहर भी नहीं जमीन पर भी नहीं आसमान पर भी नहीं पताल में भी नहीं अस्तर से नहीं ना ही सस्तर से और अग्नि से ना ही मनुष्य से ना ही किसी जानवर से देव दानव से नहीं मुझे मारने
वाला ना आकाश से ना पाताल से और भगवान ने उसे यह वरदान दे दिया और उस वरदान के बाद हिरण्यकश्यव अपने आप को भगवान मानने लगा
और उस वरदान के बाद उसने बहुत बड़े बड़े पाप किये और जब उसके पाप का घड़ा भर गया तब भगवान विष्णु ने नरसिह है
अवतार लेकर जिसमें शेर का सिर और शरीर मानव का था लंबे नाखून थे और वह खंबे में से बाहर आए जब सूर्यास्त हो चुका था ना दिन था
ना रात थी घर की चौखट पर लेकर उसे जो भी भगवान ब्रह्मा ने हिरण्यकश्यव को वरदान दिया था उसे दोहराया और अपने नाखूनों से उसका पेट फाड़ दिया और हिरण्यकश्यव की मौत हो गई
इसका मतलब यह है कि भगवान का वरदान तो टूट सकता है लेकिन किसी के मन से आशीर्वाद निकला कभी खाली नहीं जाता
आशीर्वाद के बारे में हमारा साइंस क्या कहता है तो आज के इस इंटरनेट के युग में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आशीर्वाद को माने या ना माने
क्योंकि आशीर्वाद दिखता तो नहीं है पर होता है किंतु केवल तार को पर ना जाकर कुछ बातें ऐसी भी होती है जो हमें केवल अनुभव से माननी ही होती हैं
आज का साइंस कहता है सूर्य प्रकाश अल्ट्रावायलेट कितने होते हैं लेकिन हम इसे अपनी आंखों से अलग से देख नहीं सकते लेकिन होती तो जरूर है
यह हम मानते हैं प्रकाश की लहरें दिखती नहीं लेकिन होती है इसलिए हम टीवी देख सकते हैं ध्वनि की लहरें जिसके कारण हम एक दूसरे को सुन सकता है
या एक दूसरे को अनुभव कर सकते हैं हम कोई भी शुभ कार्य करने जाते हैं तो सबसे पहले हमको अपने से बड़ों का भगवान अपने माता पिता दादा दादी अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेकर वह कार्य करना चाहिए
लेकिन आजकल हम अपने बड़ों का मान सम्मान भूलते जा रहे हैं अपने कारोबार के कारण अपने से बड़े अपने बूढ़े मां बाप की बात को अनदेखा कर देते हैं
कुछ बातें हमको खुद को ही अनुभव में लेनी होती है जो शायद भावों में या शब्दों में व्यक्त करना असंभव है गुड़िया शक्कर में मिठास होती है मां को बता नहीं सकूंगा
की मिठास क्या होती है फूलों की सुगंध कैसी होती है यह आप सिर्फ सॉन्ग के पता कर सकते हो ना कि शब्दों में व्यक्त कर सकते हो उसी प्रकार आशीर्वाद दिखाई नहीं देता
लेकिन हर मुसीबत संकट में हमारे काम आता है किसी के सच्चे दिल से निकला हुआ आशीर्वाद कभी विफल नहीं जाता है
यह आशीर्वाद पर हमारा छोटा सा प्रचार था मिलते हैं अपने अगले आर्टिकल के साथ ही |